Breaking NewsNational

क्या आप जानते हैं कि ये राईट टू प्राइवेसी है क्या ? नहीं, तो जानिए

नई दिल्ली : राईट टू प्राइवेसी को लेकर जारी सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए इसे निजता का अधिकार माना है। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला इसलिए भी अहम् माना जा रहा है क्योंकि आज के डिजिटल युग में जिस तरह से लोग अंधाधुंध अपनी निजी जानकारियों को विभिन्न माध्यम के जरिये शेयर कर रहे हैं, ऐसे में लोगों की निजता पर बड़ा खतरा मंडरा है। राईट टू प्राइवेसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया और अब इसका व्यापक असर भी देखने को मिलेगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये राईट टू प्राइवेसी है क्या ? अगर नहीं, तो आईये आसान शब्दों में इसे समझने की कोशिश करते हैं।

राईट टू प्राइवेसी का मतलब है निजता का अधिकार, यानि अपनी निजी जानकारियों और निजी जीवन को सुरक्षित रखने का अधिकार। बता दें कि हमारे संविधान में सीधे तौर पर निजता के अधिकार का जिक्र नहीं है। हालांकि व्यवहारिकता में इसे अनुच्छेद 21, सम्मान से जीवन के अधिकार का हिस्सा माना जात है। जिसका मतलब हुआ कि अगर कानूनी बाध्यता ना हो और कानूनी रास्ता ना अख्तियार किया जाए तो सरकार किसी की निजता का हनन नहीं कर सकती।

बता दें कि राइट टू प्राइवेसी का मामला सबसे पहले 1895 में उठा था। इसी साल भारतीय संविधान बिल में भी राइट टू प्राइवेसी की मजबूती से वकालत की गई थी। 1895 में लाए गए विधेयक में कहा गया था कि कि हर शख्स का घर उसका बसेरा होता है और सरकार बिना किसी ठोस कारण और कानूनी अनुमति के वहां जा नहीं सकती।

फिर साल 1925 में एक समिति ने ‘कामनवेल्थ ऑफ इंडिया बिल’ को बनाने के दौरान राइट टू प्राइवेसी का जिक्र किया था। इस समिति में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी सदस्य थे। साल 1947 के मार्च में भारत रत्न बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने राइट टू प्राइवेसी का जिक्र करते हुए कहा था कि लोगों को उनकी निजता का अधिकार है। आंबेडकर ने कहा था कि इस अधिकार का उल्लंघन रोकने के लिए कड़े मानक तय करने की आवश्यकता थी। हालांकि उनका कहना यह भी था कि अगर किसी वजह से निजता के अधिकार में दखल देना सरकार के लिए जरूरी हो जाए तो सब कुछ अदालत की देख रेख में होना चाहिए।

साल 1954 और साल 1962 में सुप्रीम कोर्ट के दो फैसले निजता के अधकार के संदर्भ में आए थे। जिनमें यह कहा जा चुका है कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है। मौजूदा मामले में केंद्र सरकार का तर्क है कि अगर निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार मान लिया जाएगा तो व्यवस्थाओं का चलतना मुश्किल हो जाएगा। हालांकि राज्यसभा में वित्त और रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने 16 मार्च साल 2016 को आधार विधेयक पर बहस के दौरान यह कहा था कि निजता एक मौलिक अधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ा है।

जेटली ने कहा था कि ‘मौजूदा विधेयक (आधार विधेयक) पहले से ही मानता है और इस पर आधारित है कि यह नहीं कहा जा सकता कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है। इसलिए मैं स्वीकार करता हूं कि संभवत: निजता एक मौलिक अधिकार है।’

Tags

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Close